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710201 - Lecture Hindi (partial) - Allahabad

His Divine Grace
A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada



710201L2-ALLAHABAD - February 1, 1971 - 4:57 Minutes



Prabhupāda: (Hindi)

Hare Kṛṣṇa. (end).


HINDI TRANSLATION
चिंतामणि-प्रकर-सदमसु कल्प-वृक्ष-
लक्षावृतेषु सुरभिर अभिपालयन्तम्

प्रभुपाद: भगवान गोविंदा "ईश्वरः परमः कृष्णः”: परमेश्वर ये कृष्णा, वो चिंतामणि धाम, अप्राकृता जगती, ये जगत से परे उस धाम में जो भगवान का धाम है, गोलोक बृन्दावन, उस धाम में, चिंतामणि धाम, उधर भगवान "चिंतामणि-प्रकर-सदमसु" उधर भी मकान है, उधर भी बगीचा है, उधर भी सब कुछ है बाकि वो सब अप्राकृत है, चिंतामणि, और उदाहर वृक्ष जो है, पेड़ जो है वो सब कल्पवृक्ष है। कल्पवृक्ष का अर्थ होता है; जैसे इधर का जो पेड़ है उसमे आम के पेड़ है तो आम ही मिलेगा। उधर का जो पेड़ है उसमे जो कुछ चाहिए सब कुछ मिलेगा। कल्पवृक्ष। क्यूंकि उधर जो कुछ है सब चेतन है, जड़ वस्तु उधर कुछ नहीं है। भगवान भी पूर्ण चेतन, भगवान का धाम, भगवान का नाम, भगवान की लीला, भगवान परिकर सब चिन्मय, चेतनमय। इधर जैसे सब जड़मय, उधर सब चेतनमय। "कल्प-वृक्ष-लक्षावृतेषु" और इस प्रकार जो कल्पवृक्ष है, एक-आद नहीं, अनेक। "लक्षावृतेषु सुरभिर अभिपालयन्तम्" और भगवान उधर सुरभि गाय को पालन करते हैं। सुरभि गाय जो होती है आप चाहे जितना दूध उसमे ले सकती है और जितना दफे चाहिए, दो दफे, तीन दफे, गाय का जो दोहा जाता है उधर नहीं, जितना चाहिए। उधर अभाव भी है नहीं और चीज़ आपको जितना चाहिए उतना मिलेगा। ये शास्त्र में सब निर्देश है।

चिंतामणि-प्रकर-सदमसु कल्प-वृक्ष-
लक्षावृतेषु सुरभिर अभिपालयन्तम्
लक्ष्मी-सहस्र-शत-संभ्रम-सेव्यमानम्

भगवान को हज़ारों-करोड़ों लक्ष्मी सब सेवा करती है। एक लक्ष्मी की कृपा मिलने के लिए हमलोग कितना तपस्या करते हैं। और करोड़ों लक्ष्मी भगवान की सेवा में सब समय नियुक्त हैं। "लक्ष्मी-सहस्र-शत-संभ्रम-सेव्यमानम्" इस प्रकार जो गोविन्दम, भगवान कृष्णा, आदिपुरुष, और भगवान जो है सब के आदि है। जैसे वेदांत में कहते हैं "जन्मादी अस्य" जो आदिपुरुष से सब कुछ जन्म हुआ है, वो आदिपुरुष कृष्णा।

ईश्वरः परमः कृष्णः
सच्चिदानंदविग्रह:

भगवान कृष्णा, उनका ये जो शरीर है, वो सचिदानंद शरीर है, जड़ शरीर नहीं है। मूर्ख लोग कहते हैं की भगवान का शरीर जड़ शरीर है। ये जो अर्च विग्रह है साक्षाद भगवान। ऐसा नहीं समझना चाहिए की ये पत्थर का है, पीतल का है, ये अपराध है। भगवान किसी भी जरिये से अपनेको प्रकाश कर सकता है। ये उनकी कृपा है। भगवान "अद्वैत अच्युत अनादिर" "महतो महियाँ" जिससे बड़ा कोई हो ही नहीं सकता उस प्रकार भगवान को आप कैसे पा सकते हैं? इसलिए भगवान कृपा करके आपसे सेवा लेने के लिए ये जो अर्च मूर्ति; जो भगवान अर्च विग्रह है, ये साक्षाद भगवान है। इसमें कोई संदेह नहीं है शास्त्र सिद्धांत से। इसलिए आप लोगों को बहुत ही भाग्यवान हैं, आपलोग भाग्यवती हैं। पंडित मालवीय जी तो चिर स्मरणीय महापुरुष थे और उनकी कृपा से आप का जिस घर में जन्म हुआ है, भगवान स्वयं इधर उपस्थित है। तो आपलोग खूब सेवा कीजिये और कभी-कभी हम लोग को भी बुलाइये, हम सब आएंगे। हरे कृष्णा।